THE SINGLE BEST STRATEGY TO USE FOR रंगीला बाबा का खेल

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उसने मोहम्मद शाह से कहा, "ईरान में रस्म है कि भाई ख़ुशी के मौक़े पर आपस में पगड़ियां बदल देते हैं, आज से हम भाई-भाई बन गए हैं, तो क्यों न इसी रस्म को अदा किया जाए."

उस दौर में नृत्य भी क्यों पीछे रहता? नूर बाई का पहले ज़िक्र आ चुका है.

रामकथा के इस अनूठे आयाम को समझने के लिए आपको दर्शकों की उस कतार का हिस्सा होना होगा, जो अयोध्या में राम जन्म होने पर बधाई गीत पर झूमती है.

लेकिन उसे दिल्ली की एक तवायफ़ नूर बाई ने, जिस का ज़िक्र आगे चलकर आएगा, ख़ुफ़िया तौर पर बता दिया है कि ये सब कुछ जो तुम ने हासिल किया है, वो उस चीज़ के आग़े कुछ भी नहीं है जिसे मोहम्मद शाह ने अपनी पगड़ी में छुपा रखा है.

रंगीला ने कहा था कि वो पीएम मोदी की आवाज निकालकर लोगो को संबोधित करेंगे और वोट मांगेगे.’

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सारी रंगीनियां और रंगरेलियां अपनी जगह, मोहम्मद शाह रंगीला ने हिंदुस्तान की गंगा जमनी तहज़ीब और कलाओं को बढ़ावा देने में जो किरदार अदा किया उसे नज़रअंदाज़ करना नाइंसाफ़ी होगी.

ख़ुद उनका तखल्लुस 'सदा रंगीला' था. इतना लंबा नाम कौन याद रखता, इसलिए जनता ने दोनों को मिलाकर मोहम्मद शाह रंगीला कर दिया और वो आज तक हिंदुस्तान में इसी नाम से जाने जाते हैं.

समझना मुश्किल हो गया कि नेपथ्य में बजते 'जय राम रमा रमनं समनं' पर खड़े होकर झूम रही भीड़ उन दर्शकों की है, जो सिर्फ एक नृत्य नाटिका देखने आए थे या फिर इस समूची दर्शक दीर्घा को ही इस नृत्यनाटिका में अयोध्या वासी बनने का किरदार दे दिया गया था. ये सब कुछ श्रीराम भारतीय कला केंद्र के यशस्वी कलाकारों की कलासिद्धि और उसकी सार्थकता ही थी कि उन्होंने लगभग तीन घंटे के अपने जादुई प्रदर्शन में भक्ति की click here शक्ति का वो सुंदर रूप प्रस्तुत किया कि, जब दर्शकों की आंखें एक लंबे समय बाद घुप्प अंधेरे से उजाले में खुलीं तो उन आंखों में 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' का सूत्रवाक्य आकार ले रहा था.

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उसी दौर की दिल्ली में एक तरफ़ मीर दर्द की ख़ानक़ाह हैं, वही मीर दर जिन्हें आज भी उर्दू का सबसे बड़ा सूफ़ी शायर माना जाता है. उसी अहद में मीर हसन परवान चढ़े जिन की मसनवी 'सहर-उल-बयान' आज भी अपनी मिसाल आप है.

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